Thursday, September 23, 2010

ढूंढो मौका ढूंढो


मौका मिलना चाहिए, बस झपट्टा मार लो चर्चा में आने के लिए। फिर चाहे महंगाई पर चिल्लाते हुए महंगे जूते पहनकर बाजार बंद करवा पड़े, चाहे किसे (बिना जान-पहचान वाले) के स्वर्गसिधार जाने पर आयोजित शोकसभा में भाषण देना हो, चाहे खुद किसी समय में घोटालों-भ्रष्टïाचार के आरोपों में घिरे हों, लेकिन दूसरों को घेरने के लिए भ्रष्टïाचार-भ्रष्टïाचार चिल्लाना हो। पीछे नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इसी से तो जनता के सामने जाएंगे। पिछले दिनों नगर परिषद पर भ्रष्टïाचार के आरोप लगे। भ्रष्टïाचार शब्द का उपयोग करते-करते कुछ नेता अखबारों में अपने नाम छपवाते रहे। अब वे शांत है। लगता है नगर परिषद में भ्रष्टïाचार बंद है। जो पहले भ्रष्टïाचारी थे, अब शिष्टïाचारी हो गए हैं और ईमानदारी से काम कर रहे हैं। ... नगर परिषद पर भ्रष्टïाचार के आरोप लगाकर तो टाइमपास हो गया, अब क्या करें। ... लो मिल गया एक और मौका। जब कुछ नहीं दिखाई दिया, तो पानी ही चलेगा। पानी प्यास बुझता है आदमी और धरती की व पेड़-पौधों की। ... तो यही पानी चर्चा में आने की प्यास क्यों नहीं बुझा सकता। इस जिले में तो पानी ने काफी आग भी लगाई है, जिसकी आंच में अनेक राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने गर्मी पाई और रोटियां सेकी। इस बार इन्द्रदेव ने प्रदेश पर अपनी कृपादृष्टिï बनाई रखी, तो पंजाब वाले बादल भी मेहरबान (भाजपाइयों के शब्दों में) हो चले हैं। पहले इसी पंजाब पर पानी देने में भेदभाव करने की बात होती थी, अब यही पंजाब मेहनबान होने लगा है। पानी पाकिस्तान जा रहा है, राजस्थाान को पानी नहीं मिल रहा, जैसी चिंता लगभग एक दर्जन नेताओं को भी तब हुई, जब इस बार बारिश अ'छी हुई। चिंता हुई है, तो अ'छी बात है, क्योंकि हो सकता है यही चिंता भविष्य की चिंता को दूर कर दे। मजे की बात यह है कि जो करीब एक दर्जन नेता चिंतित हैं, उनमें से कुछ नेता तो या तो विधानसभा चुनावों के दौरान चिंतित थे या लोकसभा चुनावों में। चुनाव तक ही चिंता की लकीरें थीं, चुनाव गए, चिंता की लकीरें भी मिट गई। अब फिर चिंतित हैं पानी के लिए और इसी चिंता के साथ पहुंच गए पंजाब में। महंगी ए.सी. गाडिय़ों पर सवार होकर ये नेता नहरों को नापते-नापते बादल के दरबार में पहुंचे और अपनी चिंता की पोटली खोल दी। वहां बैठे बादल मेहरबान हैं। पैसे तो हम दे देंगे, कट बंद करवा देंगे, राजस्थान के हिस्से का पानी दे देंगे जैसी बातें मेहरबानी वाली ही हैं। इतने मेहरबान तो पहले बादल राजस्थान पर कभी नहीं थे। यहां फिर एक शंका होने लगी है। मेहरबानी की वजह कहीं एक-दूसरे को नीचा दिखाना तो नहीं? ... यदि ऐसी बात है, तो यह ठीक नहीं है। राजस्थन में कांग्रेस की सरकार है, तो पंजाब में भाजपा की। कांग्रेस पहले पानी के लिए आंदोलन करती रही, अब भाजपा हाथ-पांव मार रही है। यह तो वह बात हुई पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम बाद में बा लिंग कर रही है। पहले पांच साल तक भाजपा बैटिंग करती रही, तो कांग्रेस फिल्डिंग में थी। अब कांग्रेस के हाथ में बल्ला है, तो भाजपा फिल्डिंग में लगी हुई है। जिले में पानी को लेकर बहुचर्चित आंदोलन हुए हैं। आंदोलन के बाद नेताओं के दौरे भी हुए। स्व. भैरोसिंह शेखावत, अशोक गहलोत व वसुंधरा राजे सिंधिया भी नहरें नाप चुके हैं। स्थिति वही की वही है। बस बैटिंग-फिल्डिंग का खेल चल रहा है। पांच साल तक कोई बैटिंग करता है, तो पांच साल तक कोई बैटिंग। कुल मिलाकर भ्रष्टïाचार के खिलाफ, महंगाई के विरोध, बिजली जैसी समस्याओं के समाधान के नाम पर चर्चा में रहने के बाद पानी को चर्चा में रहने का अवसर माना। इसका फायदा भी उठा लिया। अब उन लोगों को नए मौके की तलाश में जुट जाना चाहिए, जिनके सिर्फ चर्चा में रहने की ही बीमारी है। ... मुझे तो इस तरह की बीमारी नहीं, लेकिन नए फट्टे को ढूंढने की आदत जरूर है, जिसमें टांग जो फंसानी है।

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