Thursday, September 23, 2010

हिन्दी इज बैस्ट


कांग्रेच्यूलेशन, आज हिन्दी दिवस है। हिन्दी की पब्लिसिटी करने के लिए अनेक प्रोग्राम हो रहे हैं। स्कूलों-का लेजों में हिन्दी पर लैक्चर हो रहे हैं। लीडर हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए अंग्रेजी में आह्वान कर रहे हैं। वे कह रहे हैं इस्ट और वैस्ट, हिन्दी इ$ज बैस्ट। फादर्स-डे, मदर्स-डे, फं्रेडशिप-डे, जैसे डे की ही तरह 14 सितंबर को देशभर में हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है। यूं कहें कि सभी डे की तरह हिन्डी-डे मनाया जा रहा है। हिन्दी दिवस पर ही फट्टे में टांग फंसाने का मन क्यों हुआ? इसके पीछे भी वजह है। सुबह-सुबह बच्चे से पूछा कि आज कितनी तारीख है, तो जवाब मिला फा र्टिन सैप्टेम्बर। हिन्दी दिवस के दिन बच्चे ने अंग्रेजी में तारीख बताई, तो हिन्दी की हालत पर बस थोड़ी-बहुत दया आ गई। बच्चा यदि कहता 14 सितंबर और हिन्दी दिवस है , तो कम से कम हिन्दी दिवस पर तो फट्टे में टांग नहीं फंसाता। खैर अब फंसा दी है, तो जब तक निकलेगी नहीं, तब तक कलम की शान लेता रहूंगा और हिन्दी की शान के लिए उसे घसीटता रहूंगा। बात हिन्दी दिवस की है, तो इसे मनाने या ना मनाने से कोई फार्क तो पडऩे वाला नहीं। मत शरमाइए, हिन्दी अपनाइए जैसे नारे लगाने वालों को भी अब शर्म महसूस होती होगी, क्योंकि इस तरह के नारे साल के 365 दिन में से एक दिन 14 सितंबर को ही लगाए जाते हैं। बाकी के 364 दिनों तक तो मत घबराइये, अंग्रेजी अपनाइये जैसी ही स्थिति रहती है। वैसे अंग्रेजी इतनी बुरी नहीं है, लेकिन वह हिन्दी के मुकाबले अधिक अच्छी भी तो नहीं कही जा सकती। फिर भी हिन्दी की बजाए अंग्रेजी इक्कीस होती जा रही है। अच्छा भला आदमी हिन्दी में बात कहता-कहता एकाध शब्द इंग्लिश में मार ही डालता है। आजकल तो फिल्मों में ही देख लो। ऐसे कई दृश्य देखने को मिल जाएंगे, जिनमें गुस्सा भी अंग्रेजी में आता है और गालियां भी अंग्रेजी में दी जा रही होती है। राह चलते किसी व्यक्ति के कोहनी लगने पर आपके मुंह से माफी चाहता हूं शब्द की बजाय दो अक्षर का शब्द सा री ही निकलता है। काम पर देरी से पहुंचे, तो वजह पूछने पर आपका जवाब ट्रैफिक अधिक था या घर में गैस्ट आए हुए थे या मदर...ब्रदर...फादर...सिस्टर की तबीयत ठीक नहीं थी होगा। खुद बेशक हिन्दी मीडियम स्कूल में पढ़े हों, लेकिन बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाना है। वह बात अलग है कि मोटी फीस देते समय आपकी जेब ढीली हो जाए। आजकल छोटे-छोटे बच्चे हिन्दी की बजाए अंग्रेजी में अधिक बात करते हैं। बच्चे जब अंग्रेजी में बात करते हैं, तो अभिभावक खुशी से फूलकर कुप्पा हो जाते हैं। कभी सोचा है जब खुद स्कूल में पढ़ते थे, तो खर्चे के लिए एक-दो रुपए मांगते थे, लेकिन आज के बच्चे खर्चा मांगते हैं, तो कहते हैं फाइव, ट्वंटी, फिफ्टी या हंड्रेड रुपीज देना। बात अंग्रेजी स्कूलों की करें, तो वहां की पढ़ाई और व्यवहार देखकर हिन्दी को तो बहुत गुस्सा आ रहा है। हिन्दुस्तान में इंग्लिश मीडियम स्कूलों में हिन्दी की ऐसी अनदेखी। प्रार्थना अंग्रेजी में, छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र इंग्लिश में, प्रश्न-पत्र इंग्लिश में, सुलेख प्रतियोगिताएं इंग्लिश में, अध्यापक-विद्यार्थी में वार्ता इंग्लिश में। ... और तो और डांट-फटकार भी इंग्लिश में। अब तो हैरानी होती है, जब हिन्दी दिवस पर प्रोग्राम के दौरान कुछ जगहों पर भाषण भी इंग्लिश में दिए जाने लगे हैं। ऐसी स्थिति में सोचो हिन्दी को अंग्रेजी पर कितना गुस्सा आता होगा। यदि इस तरह का गुस्सा किसी आदमी को आता, तो वह बहुत कुछ सकता है। गुस्से पर काबू नहीं पा सकता, तो वह उसे पीट भी सकता है। ... लेकिन यह हिन्दी है, बस गुस्सा कर सकती है, आगे कुछ नहीं कर सकती। अनेक कार्यक्रमों में जब हिन्दी में भाषण होते हैं या प्रतियोगिताएं होती हैं, तो हिन्दी जरूर राहत महसूस करती है, लेकिन जब वह किसी के मुंह से सुनती है हिन्दी इ$ज बैस्ट तो फिर से उसका चेहरा लटक जाता है। आजकल किसी के नाम में भी इंग्लिश टांग अड़ा ही देती है। अब ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं। मेरे नाम को ही ले लो। साढ़े पांच अक्षर का अच्छा-भला नाम लेने में अनेक लोगों को तकलीफ होने लगी, तो उन्होंने इसे छोटा कर दिया है। अब कहते हैं सिर्फ जेपी । यह तो मेरा नाम हुआ, हो सकता है आपके नाम-मनमोहन सिंह को एम.पी. सिंह, राजकुमार को आर.के., रुपिन्द्र सिंह को आर.एस., सूर्य प्रकार को एस.पी., विनोद कुमार को वीके, रवि कुमार को आरके कहा जाता हो। इसी तरह जब श्रीगंगानगर लिखने की बात आती है, तो अनेक लोग लिखते हैें एसजीएनआर । जब नाम में ही इंग्लिश टांग फंसा रही है, तो हिन्दी कब तक सांस लेती रहेगी। ... इतना पढऩे के बाद आप जरूर कहेंगे फट्टे में टांग फंसाकर हिन्दी दिवस की इतनी एैसी-तैसी की है। ... लेकिन सोचो कौन हिन्दी के लिए धन-धन कर रहा है।

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