Thursday, September 23, 2010

सेवा का एक नाम: गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीद

संभाग भर में सैंकड़ों की संख्या में सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और व्यापारिक संगठनों के बीच गंगानगर जिला मुख्यालय पर पदमपुर मार्ग पर स्थित गुरूद्वारा धन धन बाबा दीप सिंह ने पिछले लम्बे समय से अपनी अलग पहचान बनाई हुई है, तो इसके पीछे नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने वालों की एक टीम है। समय-समय पर जरूरतमंदों की सेवा करने वाली इस टीम का कहना है यदि व्यक्ति कोई काम करता है, तो उसके पीछे वह कोई न कोई लाभ जरूर सोचता है, लेकिन नि:स्वार्थ भाव से काम करने का एक अलग ही मजा है। यूं कहें कि नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने से ही दिल को सुकून मिलता है। लगभग दो दशक से गुरूद्वारा की इस टीम द्वारा सिख ही नहीं, बल्कि हर वर्ग की सेवा की जा रही है। सिख समुदाय के पर्वों के अलावा होली, दीपावली, दशहरा, लोहड़ी आदि पर्वों के दौरान होने वाले शहर में कार्यक्रमों के दौरान गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह के सेवादार किसी ने किसी रूप में अपने सेवाएं देते नजर जाते हैं। कभी जूते-चप्पलों की सेवा, तो कभी पानी अथवा लंगर की। भारत-पाक सीमा पर सेना तैनाती के दौरान जब हालात लड़ाई वाले बने थे, तो इसी गुरूद्वारा के सेवादार भारत-पाक सीमा तक पहुंचे और वहां सैनिकों और ग्रामीणों को लंगर उपलब्ध कराया। इतना ही नहीं, जब स्थिति सामान्य हुई और किसान अपने नुकसान की भरपाई के लिए आंदोलन पर उतारू हुए, तो उनके लिए भी कलक्टरी के बाहर काफी दिनों तक लंगर की व्यवस्था गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह ने करवाई। अन्य संगठन बेशक अपने पांव पीछे हटा लें, लेकिन गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह के सेवादार कदम हटाने की बजाए, चार कदम आगे ही रखते हैं, जिसके परिणाम भी सराहनीय रहे हैं। समय-समय पर जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शादियां करवाने के अलावा सिख समागम भी इसी संस्था द्वारा करवाए जाते हैं। संस्था द्वारा करवाए जाने वाले कार्यों का यदि विस्तार से उल्लेख किया जाए, तो स्थान बहुत कम पड़ जाएगा। फिर भी ऐसे कुछ कार्यों का उल्लेख किया जाना जरूरी भी है, क्योंकि इनके उल्लेख से संभवत: अन्य संस्थाओं को जरूर प्रेरणा मिलेगी।
बात संभाग के अन्य क्षेत्रों की बजाय गंगानगर जिला मुख्यालय की करें, तो यहां पर विभिन्न धर्मों से जुड़े अनेक संगठन, समाजसेवी संस्थाओं के अलावा व्यापारिक तथा राजनीतिक संगठन भी सक्रिय हैं। इन संस्थाओं द्वारा समय-समय पर समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य किए जाते रहे हैं, जिनके बारे में समाचार पत्रों में आपने पढ़ा तो होगा ही। इन्हीं संगठनों में से अनेक संगठन ऐसे भी हैं, जो समाजसेवा में सक्रियता के नाम पर सिवाय अपना नाम चमकाने के अलावा कुछ नहीं करते। ऐसे संगठनों का असली चेहरा करीब पांच साल पहले सामने भी आ गया था। यह जानकार आपको हैरानी जरूर होगी कि जो संगठन समाजसेवा के नाम पर अपने आप को सेवक कहते हैं, वे ही संगठन किसी की भूख मिटाने के लिए अपने कदम पीछे कर लेते हैं। बात करीब पांच साल पहले की है। राज्य सरकार ने जरूरतमंद लोगों को कम राशि में भरपेट खाना खिलाने की योजना शुरू की थी, तो हर वर्ग ने इसकी सराहना की थी। योजना के मुताबिक हर सदस्य को मात्र दो रुपए में भरपेट भोजन करवाया जाना था। दो रुपए एक सदस्य देता, जबकि दो रुपए राज्य सरकार अपने स्तर पर वहन करती। इस योजना की जहां सराहना की जा रही थी, तो दूसरी तरफ अनेक लोग हैरान भी थे कि आखिर महंगाई के इस दौर में मात्र चार रुपए में भरपेट भोजन कैसे उपलब्ध करवाया जा सकेगा। खैर तत्कालीन जिला कलक्टर कुंजीलाल मीणा की मौजूदगी में यह योजना शुरू हुई, तो इसमें मीडियाकर्मियों के साथ-साथ क्षेत्र के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व व्यापारिक संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया गया। योजना शुरू हुई, तो उम्मीद थी कि यह चलेगी। अफसोस, अन्य योजनाओं की तरह इसका भी हाल बहुत बुरा हुआ। नतीजन वह बंद होने के कगार पर पहुंच गई। जब यह योजना बंद होने के कगार पर थी, तो योजना से जुड़े अधिकारियों ने जिले के धार्मिक, सामाजिक आदि संगठनों के पदाधिकारियों से मुलाकात कर सहयोग का आग्रह किया, लेकिन योजना में दिलचस्पी दिखाने की बजाए संगठनों ने अपने कदम पीछे खींच लिए। बात किसी की भूख मिटाने की थी, तो गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह के सेवादारों ने अपने कदम आगे बढ़ाए। गुरूद्वारा के प्रमुख सेवादार तेजेपालसिंह टिम्मा कहते हैं सिख समाज की तो परंपरा रही है लंगर। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। इसी परंपरा के चलते वे किसी को भूखा नहीं देखना चाहते। गुरूद्वारा ने इस योजना में भागीदारी निभा दी। गुरूद्वारा ने तो जो दो रुपए आम जनता से खाने के बदले में लेने थे, वे लेने भी बंद कर दिए और नि:शुल्क भोजन उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया, जो अभी तक जारी है और भविष्य में भी नि:शुल्क भोजन उपलब्ध करवाया जाएगा। तब अन्य संगठन सोचने को मजबूर हो गए कि आखिरकार गुरूद्वारा कैसे इस योजना पर काम करेगा। इसी सोच का जवाब सेवादारों ने कुछ इस तरह से दिया गुरू की कृपा से योजना चलेगी। राज्य सरकार ने करीब दो वर्ष तक तो योजना के मुताबिक अपने स्तर पर दो रुपए प्रति सदस्य के हिसाब से वहन किए, लेकिन बाद में इसे भी किसी कारणवश बंद कर दिया। राज्य सरकार ने हाथ पीछे कर लिए, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता कि गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह भी पीछे हट जाए। टिम्मा कहते हैं सरकार ने दो रुपए देने में भी कंजूसी दिखा दी, लेकिन वे अपने स्तर पर लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध करवाएंगे। तब से आज तक जरूरतमंदों को भरपेट भोजन उपलब्ध प्रतिदिन करवाया जा रहा है। हैरानी तब होती है, जब छोटे-मोटे समाजसेवी कार्यों का उल्लेख तो मीडिया द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन भूख मिटाने जैसे अहम कार्य को नजरंदाज कर दिया गया। गुरूद्वारा के सेवादारों के मुताबिक रोजाना शाम को जिला मुख्यालय पर राजकीय चिकित्सालय में एक जिप्सी जाती है, जिसमें सवार होते हैं सेवादार। दाल और परसादा (रोटियां) लेकर जब ये सेवादार अस्पताल परिसर में दाखिल होते हैं, तो वहां मौजूद मरीज व उनके परिजन उनके इस कार्यों की न केवल सराहना करते हैं, बल्कि उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं। रोजाना 400 से 450 लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध करवाया जाता है। इतने लोगों के भोजन की व्यवस्था पर खर्च कितना होता है के सवाल पर गुरूद्वारा के सेवादार कहते हैं सेवा करते हैं, हिसाब नहीं रखते। खर्चा जो भी होता है, गुरू की कृपा से वहन किया जाता है। यदि इसी तरह से गुरू की कृपा बनी रही, तो उनके प्रयास रहेंगे कि शहर की झुग्गी झोंपडिय़ों, कच्ची बस्तियों आदि क्षेत्रों में भी भोजन उपलब्ध कराया जाएगा। गुरू की कृपा से गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां के सेवादार इस पुनीत कार्य को बखूबी पूरा कर रहे हैं। ऐसे अनेक कार्य हैं, जिनसे अन्य संगठनों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए।
अक्सर अनेक जरूरतमंद परिवारों के सामने अपने बच्चों की शादी को लेकर चिंता रहती है। इसी चिंता को मिटाने के लिए भी बाबा दीप सिंह की टीम आगे आई। हर वर्ष जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शादी इसी संस्था द्वारा नि:शुल्क करवाई जा रही है। मुख्य सेवादार तेजेन्द्रपाल सिंह टिम्मा के मुताबिक करीब दो दशकों से गुरूद्वारा द्वारा हर वर्ष सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन किया जा रहा है। समारोह के दौरान बारात के स्वागत से लेकर उनके खान-पान की व्यवस्था करना ही नहीं, बल्कि उपहार स्वरूप ससुराल पक्ष को घरेलू जरूरतमंद का सामान भी नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जाता है। अब तक कितनी शादियां करवाई जा चुकी हैं के सवाल पर टिम्मा कुछ सोचते हैं और कहते हैं याद नहीं, कभी गिनी ही नहीं। साथ ही वे बताते हैं जरूरतंद परिवारों के लिए कोई सीमा नहीं है। चाहे वे राजस्थान के हों या पंजाब अथवा हरियाणा के। अन्य राज्यों के भी जरूतमंद परिवारों के बच्चों की शादियों में गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां हर तरह से सहयोग करता है। हिन्दू समाज के बच्चों की शादी हिन्दू रीति-रिवाज से और सिख समाज के बच्चों की विवाह आनंद कारज से करवाया जाता है। हालांकि अभी तक मुस्लिम परिवार के बच्चे शादी के लिए नहीं आए, लेकिन यदि वे भी आते हैं, तो मुस्लिम रीति-रिवाज से उनका भी विवाह करवाया जाएगा। यह तो थी सामूहिक विवाह समारोह की बात, लेकिन इसी दौरान किसी भी परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो और वह अपने बच्चों का विवाह करवाना चाहता हो, को भी गुरूद्वारा हर तरह से सहयोग करता है। सेवा, सहयोग और अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लडऩे में हमेशा आगे रहने वाले गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह के ऐसे ही प्रयासों की बदौलत हर वर्ग को लाभ मिल रहा है। ऐसे प्रयासों के लिए गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां की जय हो ।
और बना दिया इतिहास: गंगानगर में इतिहास बना! हैरानी जरूर हुई होगी। कम से कम गंगानगर में तो यह इतिहास गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां ने बना ही डाला। अक्सर किसी की मृत्यु होने के बाद शव की सार-संभाल के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। चूंकि यह शव की सार-संभाल का मामला था, तो कोई भी संगठन इसके लिए आगे आने की सोच भी नहीं रहा था। ऐसे में गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह ने इसमें रुचि दिखाई। विगत दिनों डिपफ्रिज की व्यवस्था गंगानगर जिले में की गई, तो लोग हैरान तब हुए, जब उन्हें पता चला कि यह व्यवस्था सरकार ने नहीं, बल्कि गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां के सेवादारों ने अपने स्तर पर करवाई है। टिम्मा ने बताया कि डिपफ्रिज की लागत काफी अधिक है, वहीं इसके उपयोग के दौरान भी खर्चा अधिक रहता है। फिर भी गुरूद्वारा ने यह व्यवस्था नि:शुल्क उपलब्ध करवा रखी है। इसके तहत चौबीस घण्टे यह सेवा शुरू रहती है। शव लाने, ले जाने और उसके रख-रखाव की जिम्मेदारी गुरूद्वारा के सेवादार निभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बेशक शव लावारिस हो, लेकिन सार-संभाल के लिए वे हाजिर हैं। वर्तमान में गुरूद्वारा में 6 डिपफ्रिज हैं और यदि जरूरत पड़ी तो इनकी संख्या में और भी वृद्धि कर दी जाएगी।
सेवाभावी टीम: पदमपुर रोड स्थित गुरूद्वारा धन धन बाबा दीप सिंह शहीदां में एक ऐसी टीम है, जिनके सदस्य समय-समय पर सेवा के क्षेत्र में आगे रहते हैं। इसी टीम में शामिल हैं गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह के मुख्य सेवादार तेजेन्द्रपाल सिंह टिम्मा, सतनाम सिंह लाडा, जोगेन्द्र सिंह भाटिया, हरप्रीत सिंह, जीतेन्द्र सिंह, मनजीत सिंह, हरमिन्दर सिंह कोचर, कुलविंदर कोहली, कंवलजीत सिंह व बलकरण सिंह सरपाल। टीम का कहना है जो भी कार्य करते हैं, मिलजुलकर करते हैं। इसके लिए गुरू की कृपा से पूरी संगत का भी पूरा सहयोग मिलता रहता है।
सेवा की सराहना: किसी भी क्षेत्र में यदि कोई उत्कृष्ट कार्य करता है, तो उसकी सराहना की जानी चाहिए। सराहना की वजह से उसका हौंसला बढ़ेगा। गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां के प्रयासों की सराहना करने में अनेक दिग्गजों ने किसी तरह की कंजूसी नहीं बरती, तो इसका परिणाम है कि गुरूद्वारा के सेवादारों के हौंसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। जरूरतमंद परिवारों के बच्चों का विवाह, भूखे को भोजन, अन्याय के विरुद्ध लडऩे जैसे कार्यों के लिए जहां समय-समय पर स्थानीय विधायक, सांसद, सभापति तथा अन्य जनप्रतिनिधियों के अलावा अनेक संगठनों के लोग सराहना करते रहे हैं, वहीं तत्कालीन उपराष्ट्रपति स्व. भैरो सिंह शेखावत भी गुरूद्वारा की मुक्तकंठ से सराहना कर चुके हैं। इतना ही नहीं पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह तो जब भी गंगानगर आते हैं, गुरूद्वारा में उपस्थिति दर्ज करवाए बिना वापिस लौटते ही नहीं। विगत दिनों सामूहिक विवाह आयोजन का पता चलने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पत्र लिखकर गुरूद्वारा के इस कार्य की सराहना की।
बच गया शहर: कुछ वर्ष पूर्व जब तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने प्रदेश में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था, तो अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तरह गंगानगर के लोगों में भी भय व्याप्त हो गया था। अनेक लोग तो अपने हाथों से अपने खून-पसीने की कमाई से बने मकानों और दुकानों को तोडऩे में लग गए। कुछ धार्मिक संस्थाओं ने भी अतिक्रमण तोडऩे शुरू कर दिए। चूंकि गुरूद्वारा बाबा दीप सिंह शहीदां में लोगों की श्रद्धा है, तो इसको बचाने में भी संगतों ने मोर्चा संभाल लिया। पदमपुर रोड पर गुरूद्वारा के आगे हजारों की संख्या में जब संगत पहुंची और मोर्चा संभाला, तो पुलिस-प्रशासन ही नहीं, बल्कि सरकार को भी अपने कदम पीछे हटाने पड़े। नतीजन अतिक्रमण हटाने वाला अमला वापिस लौट गया और शहर के अनेक लोगों के मकान-संस्थान भी टूटने से बच गए। गुरूद्वारा की संगतों द्वारा किए गए आंदोलन का ही परिणाम था कि लोग आज भी अपने घरों-संस्थानों में सुरक्षित हैं।

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