Thursday, September 23, 2010

महिमा है इनकी अपरंपार


टैम्पो वाले भाइयों महिमा अपरंपार है। यात्री बैठता कहां से है, जाना कहां होता है और पहुंचा कहां दिया जाता है। दाद देनी होगी लालची टैम्पो चालकों की। हुआ यूं कि जब घूमघामके कोडा चौक पर पहुंचा, तो परेशान दिख रही एक वृद्धा ने टैपो को देखा। रुकनेभर का ही इशारा किया था वृद्धा ने। इशारा होते ही टैम्पो चालक ने ऐसा कट मारा कि पीछे वाला वाहन चालक दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बच गया। टैम्पो रुका, महिला बोली सरकारी अस्पताल जाना है। इतना सुनना था कि टैम्पो चालक ने बैठने का इशारा किया और दौड़ा दिया टैम्पो। अभी टैम्पो कुछ ही दूर पहुंचा था कि एक और इशारा पाकर टैम्पो ने फिर पुराने स्टाइल वाला कट मार दिया। इशारा करने वाले ने रेलवे स्टेशन पहुंचाने की बात कही। बैठ जाओ टैम्पो चालक की मुंह से यह निकला, तो परेशान महिला ने इसमें एतराज जताते हुए कहा अस्पताल में मरीज भर्ती है, जल्दी पहुंचना है। जल्दी ही पहुंचाउंगा, बस रेलवे स्टेशन में कितना समय लगता है। टैम्पो रेलवे स्टेशन होते हुए जैसे ही बीरबल चौक पहुंचा, तो एक और सवारी अग्रसेन चौक के लिए चढ़ गई। महिला ने माथे का पसीना पोंछा। मरीज को लेकर चिंतित वृद्धा ने फिर से टैम्पो चालक को जल्दी अस्पताल पहुंचाने के लिए कहा, लेकिन पहले वाला जवाब जल्दी ही पहुंचाउंगा दिया। अग्रसेन चौक पर टैम्पो पहुंचा। महिला ने राहत की सांस ली और सोचा अब तो अस्पताल पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा। महिला सोच ही रही थी कि तीन व्यक्ति टैम्पो चालक के नजदीक पहुुंचते हैं। कहते हैं बालाजी धाम जाना है। टैम्पो वाले का वही सदाबहार जवाब बैठ जाओ। इतने में ही महिला के मोबाइल पर घंटी बजी। मोबाइल अटैंड किया, तो महिला की चिंता और बढ़ गई। बात सुनकर महिला बोली भइया मरीज को खून चढ़ाना है पहले अस्पताल चलो। ... लेकिन टैम्पो चालक है कि उसने तो जैसे सारे शहर के लोगों को गंतव्य तक पहुंचाने का ठेका ले लिया हो। बेशक गंतव्य पहुंचने के लिए यात्री को कितनी ही परेशानी का सामना करना पड़े, उससे टैम्पो चालक को कोई लेना-देना नहीं। बालाजीधाम पहुंचने के बाद इतना तो तय था कि टैम्पो के पहिए अस्पताल पहुंचकर ही रुकेंगे। फूटी किस्मत महिला और मरीज की, जो टैम्पो शिव चौक पहुंचा। अस्पताल की तरफ मुडऩे से पहले ही टैम्पो चालक ने अपने चिर-परिचित अंदाज में बे्रक पर रख ही दिया। पांच युवक आए। वे भी परेशान। चालक से बोले कृष्णा टाकीज जाना है। फिल्म शुरू होने में मात्र पांच मिनट ही रह गए हैं। जल्दी पहुंचा दो। पांच युवकों ने चंद सैकिंडों में कही इस बात से महिला का सिर भन्ना उठा, तो टैम्पो चालक का चेहरा भी खिल उठा। बड़ी ही विनम्रता टैम्पो चालक में देखने को मिली। बोला बहनजी, टैम्पो दूसरा कर लो, टैम्पो अस्पताल नहीं जाएगा। माथे पर चिंता, चेहरे पर गुस्सा, लेकिन महिला चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती। बिना कुछ बोले टैम्पो से नीचे उतर गई और टैम्पो चालक कृष्णा टाकीज की तरफ रवाना हो गया। यह किस्सा पढऩे के बाद आपको भी लगेगा कि टैम्पो वालों की महिमा अपरंपार है। एक मरीज को खून चाहिए, लेकिन टैम्पो चालक को रुपए का लालच है। पांच युवकों को फिल्म देखनी है। मरीज की हालत को दरकिनार कर टैम्पो चालक ने पांच युवकों की अधिक चिंता हुई, जिन्होंने फिल्म देखनी है। महिमा तो टैम्पो वालों की अपरंपार है, लेकिन यह अच्छी नहीं है। खैर यह तो एक महिला थी वो भी वृद्ध। यदि अभी भी टैम्पो वाले यही महिमा अपनाते रहे और उनका सामना किसी खड़ूस से हो गया, तो यह मत कहना हमें तो कोई अस्पताल छोड़कर आओ। जिसे जहां जाना हो, उसे पहले पहुंचाओ। सलाह दी है। मानो तो ठीक, ना मानो तो आपकी मनमर्जी। मैं तो चला गंगासिंह चौक। कल फिर मिलेंगे, नए फट्टे में टांग फंसाकर।

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