Thursday, September 23, 2010

भ्रष्टाचार का आचार


नगर परिषद में भ्रष्टाचार का बोलबाला है , सबसे अधिक निर्माण शाखा में घोटाले हुए , भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से जांच करवाओ जैसे आरोप सुन-सुनकर कान पक गए हैं और आप भी बोर हो गए होंगे। आरोप वही पुराने, लेकिन लगाने वालों में कुछ नए चेहरे हैं। कोई न कोई नया चेहरा अचानक प्रकट होता है और भ्रष्टाचार शब्द का उपयोग कर वह अफसरों-जनप्रतिनिधिसुधारक का चौला ओढऩे का प्रयास करता है। आरोप लगाने वाले नेता कहते हैं सड़कों के निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग हुआ, ठेकेदार और अधिकारियों ने जेबें भर ली। लो कल्लो बात। जब निर्माण हो रहा था, तो घोड़े बेचकर सोते रहे। निर्माण हुआ और वह टूट भी गई। अब गड्ढे और कंकरीट देखकर कहते हैं भ्रष्टाचार का बोलबाला है। उनसेे कोई पूछे कि भ्रष्टाचार कोई नई बात थोड़े ही है। भ्रष्टाचार तो आलू-प्याज की तरह है, जो हर सीजन में मिल जाएगा। इसके लिए उसे न तो सर्दी की जरूरत है और न ही गर्मी की। वह कहीं भी आसानी से मिल ही जाएगी। खैर नगर परिषद में हर बार की तरह इस बार फिर से भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है। आरोप लगाने वाले भ्रष्टïाचार का आचार बनाकर चाट रहे हैं और चटखारे ले रहे हैं। चटखारे के साथ ही पटाक-पटाक की आवाजें भी आ रही हैं। अनेक पार्षद बड़ी गंभीरता दिखाते हुए आरोप लगा रहे हैं, जैसे उन्हें ही सबसे अधिक चिंता है। खैर, चिंता है, तो अच्छी बात है, लेकिन इसके पीछे जो बदबू आ रही है, वह राजनीति के कचरे में लगी आग से निकलने वाले धुएं जैसी है। पहले के वर्षों पर नगर परिषद के बोर्ड पर गौर फरमाओ, तो भ्रष्टाचार जैसी कोई बात नई नजर नहीं आएगी। पिछले बोर्ड को ही ले लो। पुरानी व्यवस्था (बहुमत) की वजह से कथित खरीद-फरोख्त के बीच अविश्वास प्रस्ताव की टांग कई बार फंसी थी। अब फूटी किस्मत, जो नई व्यवस्था आ गई। जनता ने सभापति और पार्षदों को अलग-अलग चुना है। इसी व्यवस्था ने सारा गुड़-गोबर किया हुआ है। इस बार भी यदि वही पुरानी व्यवस्था होती, तो कब के खरीद-फरोख्त की मेहरबानी से अविश्वास प्रस्ताव की टांग अड़ा देते। अब टांग अड़ा तो नहीं सकते, लेकिन खीझ तो मिटा सकते हैं। भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का गीत गाते हुए जांच की मांग भी कर सकते हैं। ... अब बताओ, पहले कितने मामलों में जांच हुई और कितनों पर कार्रवाई हुई। भ्रष्टाचार पर आरोप लगाने वालों की आंखों में नगर परिषद में बैठे उनके विरोधी रड़क रहे हैं। यदि यह रड़क नहीं होती, तो वे नगर परिषद को ही क्यों निशाना साधते। भ्रष्टाचार तो सार्वजनिक निर्माण विभाग में भी होता है और सिंचाई विभाग में भी। राष्टï्रीय रोजगार ग्रामीण रोजगार गारंटी में भी भ्रष्टाचार उपस्थिति दर्ज करवाता है, तो अन्य योजनाओं में भी भ्रष्टाचार अनुपस्थित नहीं रहता। ... तो फिर आखिरकार नगर परिषद में ही भ्रष्टाचार का आचार बनाकर क्यों चटखारे लिए जा रहे हैं। यदि वास्तव में ही सुधारक हो, तो अन्य विभागों-योजनाओं की भी जांच की मांग करो। हरे-हरे नोट किसे अच्छे नहीं लगते। ... लेकिन जब हरे-हरे नोट आते दिखाई भी नहीं दे, तो खीझ मिटाने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं दिखाई देता। ऐसे खीझ मिटाने से इतना है कि वे जैसे-तैसे पांच साल निकाल लेंगे, लेकिन इन पांच सालों में वे खीझ मिटाने की बजाय अच्छा काम भी तो कर सकते हैं। भ्रष्टाचार होने के बाद ढिंढोरा पीटने की बजाय, इससे पहले ही जाग जाएं। दिखावा करने के लिए फट्टे में टांग फंसाने वाले नेताओं को चाहिए कि वह इससे दूर ही रहें।... क्योंकि फट्टे में टांग फंसाने वाले और भी तो हैं। उन्हें भी तो मौका मिले टांग फंसाने का। ... मैं तो चला नए मौके की तलाश में।

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