Saturday, October 16, 2010

शुद्ध-अशुद्ध और युद्ध

लोगों को मिलावटी सामान देकर खुद की पांचों उंगलियां शुद्ध देसी घी में सुरक्षित रखने वाले कुछ लोगोंं को रात को ही नहीं, बल्कि दिन में भी छापामारी के सपने आ रहे हैं। ऐसे सपने जो अपने भी नहीं लगते। आमतौर पर शुद्ध के लिए युद्ध अभियान वाले विभाग पर हफ्ताबंदी जैसी बातें आम होती रहती हैं, अब वही विभाग दीपावली के सीजन में मिलावट करने वाले कुछ लोगों की उंगलियों पर चिपके घी को पिघलाने का मन बनाया है, तो इसका विरोध तो होना ही था। दीपावली के सीजन में अ'छी-खासी की लक्ष्मी की उम्मीद पर गुरूनानक बस्ती गड्ढे वाला पानी फिरे, यह सहन कैसे हो सकता है। उधर, दवाइयां बेचने वाले भी खफा हो गए हैं। कुछ दवा विक्रेताओं को दुकानों के निरीक्षण की कार्रवाई से काफी एलर्जी है। ऐसी एलर्जी कि यदि कोई निरीक्षण करे, तो खुजली होने लगती है। खुजली इतनी होती है बिना विरोध-प्रदर्शन के मिटती ही नहीं। ऐसी ही खुजली मिटाने के लिए सोमवार को कलक्ट्रेट पर पहुंचे कुछ दवा वाले भाईलोग। कमाल की बात है, दूसरों की खुजली मिटाने के लिए दवाई देेते हैं और खुद की खुजली मिटाने के लिए कलक्ट्रेट पर जाते हैं। खैर सबका अपना-अपना तरीका है खुजली मिटाने का। फट्टे में टांग फंसाने वाली बात यह है कि दीपावली के सीजन में जिस वस्तु की अधिक मांग रहती है, वे हैं खाने-पीने की। अब इन्हीं खाने-पीने वालों पर छापामारी की जा रही है। इसका विरोध भी हो रहा है। यदि ईमानदारी से छापामारी की जा रही है, तो ईमानदारी से चीजें बनाने और बेचने वालों के पेट में दर्द उठना ही नहीं चाहिए। दर्द और मरोड़े उठें उन लोगों के उठने चाहिए, जिनकी खुद की उंगलियां शुद्ध देसी घी में रहती हैं और वे दूसरों की उंगलियां तेल में डूबोते हैं। कलक्ट्रेट पर विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों में से ईमानदार और बेईमान पहचानने के प्रयास भी किए, लेकिन किसी के माथे पर बेईमान-ईमानदार का ठप्पा लगा दिखाई ही नहीं दिया। मांग सभी की एक, छापामारी बंद करो। अब बात करें शुद्ध के लिए युद्ध अभियान की। यह अभियान भी कोई अभियान हुआ, जो सप्ताह में सिर्फ दो दिन ही चलता हो। बुधर और वीर को ही होता है शुद्ध के लिए युद्ध। बाकी के दिनों में चाहे कितना ही बाजार में सामान अशुद्ध हो, लेकिन लगता है जैसे विभाग का होता है युद्धविराम। मिलावट करने वाले मिलावट कर अपनी उंगलियां घी में रखते हैं, लेकिन छापामारी करने वाले विभाग के अधिकारियों के भला क्या उंगलियां नहीं हैं। उनके भी उंगलियां हैं। उनकी उंगलियों को भी घी अ'छा लगता है। कुछ अधिकारियों ने अपने हाथों में दस्ताने पहनकर इन्हें घी (नोट) में भिगोया हुआ है, क्योंकि उंगलियों में तो कम दस्तानों में घी लगता है। चीनी-तेल वाला विभाग तो अपनी तरफ से शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में लगा हुआ है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग पूरे साल कुंभकरणी नींद में क्यों सोया रहता है। इस विभाग ने ऐसी कौन सी शुद्ध गोलियां गटकी हुई हैं, जिनकी नींद खुलने का नाम ही नहीं ले रहीं। हफ्ताबंदी के लिए मशहूर इस विभाग के कुछ अधिकारी अब अचानक दीपावली के सीजन में बिलों में से बाहर निकलकर बाजारों में मिठाइयां सूंघ रहे हैं। यदि अधिकारी दीपावली के सीजन मात्र में ही मिठाइयां संूघने की बजाए सालभर समय-समय पर दवाइयां सूंघते, तो दुकानदारों के पेट में दर्द नहीं होता। खैर अधिकारियों ने ही आदत डाली है। आदत ऐसी कि जब मन में आया चल पड़े शुद्ध के लिए युद्ध अभियान का बैनर लेकर मिठाइयों को सूंघने, घी को जांचने। अधिकारियों को कभी-कभार छापामारी की आदत ने मिलावटखोरियों को भी मिलावट की लत लगा दी है। लत ऐसी लगी है, जिसे छूटने में समय तो लगेगा ही। अब भी कुछ हुआ नहीं है। विभाग के अधिकारी अपनी बिगड़ी आदतों को दूर करे। हफ्ताबंदी से परहेज करे और कभी-कभार सूंघने वाली बिमारी का इलाज करवाए। यदि विभाग के अधिकारी इन सभी का त्याग करे, तो ही शुद्ध के लिए युद्ध करे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो जैसे छापामारी के सपने से डरकर मिठाई और दवा विक्रेताओं ने प्रदर्शन किया है, आने वाले दिनों में पर्ची सट्टा करने वाले पुलिस थानों में हमें जीने दो, सट्टा लिखने दो , शराब बेचने वाले मत करो परेशान , बिजली-पानी चोरी करने वाले हम नहीं हैं बिजली-पानी चोर जैसे अनेक अवैध कारोबारी भी प्रदर्शन करते दिखाई देंगे। वैसे एक मिलावटी का कहना भी है हम मिलावट करते हैं, लेकिन लोग चाह से खाते हैं। जब वे खाते हैं, तो उनके चेहरे खिल उठते हैं। जब लोगों को ही मिलावटी सामान खाने में स्वाद आता है, तो अधिकारी क्यों फट्टे में टांग फंसा रहे हैं। रंग-बिरंगी बूंदी भगवान के चढ़ाई जाती है। इसमें भगवान को भी एतराज नहीं। बात इस मिलावटी की भी सही है, क्योंकि अधिकारियों ने मिलावटियों को मिलावट की लत लगाई और यही लत आम लोगों को स्वाद देने लगी। अ'छी जंजीर बनी हुई है, जो टूटने का नाम ही नहीं ले रही। जंजीर टूटे या न टूटे, अपनी टांग तो चली नए फट्टे की तलाश में।

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