Tuesday, October 19, 2010

डेंगू नहीं हम गुंडे हैं

कसम फट्टे की, दावे के साथ कह सकता हूं कि इस बार डेंगू के गुंडे (म'छर) स्वर्गलोक में लोगों को पहुंचाने के लिए अधिकारियों से सैटिंग कर ही गंगानगर में घुसे हैं। तभी तो रोजाना ही मुझे मेरा कोई न कोई जानकार कहता मिल ही जाता है यार आज फिर प्लेटलेट्स कम हो गई। दाद देनी होगी डेंगू के गुंडो की, जो बिना डरे, सीना चौड़ा किए हुए गुंडागर्दी कर रहे हैं। डंक पर डंक मारकर अच्छे-भले आदमी को अस्पताल से स्वर्ग का रास्ता दिखाते जा रहे हैं।... और मेरे जैसे लोग फट्टे में टांग फंसाकर अधिकारियों से यह पूछने की गलती कर बैठते हैं साहब डेंगू के कितने रोगी सामने आए हैं? क्या उपाय किए जा रहे हैं? जवाब मिलता है कल तक नब्बे थे, आज सौ रोगी सामने आए हैं। फिर भी स्थिति नियंत्रण में है। अधिकारियों का जवाब सुनकर तो ऐसे लगता है जैसे सचिन तेंदुलकर द्वारा शतक मारने के बाद पूर्व कोच ग्रेग चैप्पल प्रशंसा कर रहे हों। मुझे तो सोचकर ही डर लगता है कि इस सार डेंगू के गुंडे गुंडागर्दी कर रहे हैं, तो अगले वर्ष क्या करेंगे। लो डेंगू के गुंडों की गुुंडागर्दी से पीडि़तों को मेरी तरफ से बधाई हो। क्योंकि कइयों के स्वर्ग सिधार जाने और दर्जनों के अस्पताल में पहुंच जाने के बाद आखिरकार लंबी तानकर सोने वाले पार्षदों और अधिकारियों की आंखें खुल ही गई। तभी तो कल नगर परिषद में बैठक हुई। बैठक क्या हुई, कसम फट्टे की भड़ास निकालने और बदले में सफाई देने तथा आश्वासनों का पिटारा खोलने की ही प्रतियोगिता हुई। काफी देर तक चली इस प्रतियोगिता में एक पार्षद ने ऐसे भड़ास निकाली, जैसे बैठक में ही डेंगू के म'छर ने पूरा मूड बनाकर उसे डंक मारा हो डेंगू बुखार की पहचान करने के लिए जिला चिकित्सालय में सीबीसी मशीन ही पिछले तीन माह से खराब पड़ी है। पार्षद की इस बात पर बेशर्मी हंसी भी आती है और गुस्सा भी। हंसी उनकी याददाश्त को लेकर आती है, जो तीन माह बाद सीबीसी मशीन खराब है के साथ वापिस आई। गुस्सा इसलिए आता है कि तीन माह के दौरान कई लोग स्वर्ग सिधार गए और दर्जनों लोग अस्पताल में इलाज करवाने पहुंचे। कोई गंगानगर में डा क्टरों के चढ़ावा चढ़ा रहा है, तो कोई लुधियाना, हिसार या चण्डीगढ़ अथवा जयपुर में मोटी रकम निजी चिकित्सालयों के दरबार में भेंट चढ़ा रहा है। लो अब चिकित्सा अधिकारी की भी सुन लो चिकित्सालय में रोगियों की बढ़ती संख्या के हिसाब से बेड और वार्ड कम पड़ गए हैं। वाह जी वाह, मजा आ गया कसम से। शहर में डेंगू के रोगी बढ़ रहे हैं, उसकी चिंता नहीं। चिंता है तो सिर्फ बैड और वार्ड की। मेरी तो सरकार से एड़ी से लेकर चोटी तक प्रार्थना है कि वह डेंगू को बेशक न भगाए, लेकिन वार्ड और बैडों की संख्या जरूर बढ़ाएं। तांकि डेंगू के गुंडों से प्रताडि़त होकर कोई अस्पताल में पहुंचे, तो उसे इलाज नहीं, बल्कि बैड जरूर मिल जाए। चिकित्सा अधिकारी की इस तरह की बातों से डेंगू के गुंडे जरूर खुश होते जा रहे हैं। भला खुशी क्यों न होगी। डेंगू के गुंडों को मारने की बजाय चिंता बैड और वार्डों की हो रही है। गंदे पानी के गड्ढों को डेंगू के गुंडों स्वीमिंग पूल और नालियों को नहर। गंदगी के ढेरों को वे किसी हिल स्टेशन की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। रात को सो रहे लोगों को डंक मार-मारकर उनका खून चूस रहे हैं ये गुंडे। ... ऐसे ही अनेक गुुंडे कइयों को अस्पताल और स्वर्गलोक तक पहुंचाने के बाद चिंतित दिखाई देने लगे हैं। ऐसे डेंगू वाले गुंडों की अपने-अपने इलाके में स्थित गंदगी के ढेरों में बैठकें हुईं। चिंतित डेंगू वाले गुंडों के नेता बोले अरे सभी भाईलोग गंगानगर में ही लोगों का खून चूसते रहे, तो खून की इतनी कमी आ जाएगी कि बाद में एक-एक मच्छर को एक-एक बूंद के लिए तरसना होगा। अरे गंगानगर के अलावा कहीं और भी तो जाओ। सभी के सभी कभी सेतिया का लोनी, तो कभी पुरानी आबादी या जवाहरनगर अथवा ब्ला क एरिया में ही लोगों का खून चूसे जा रहे हो। पगाीस-तीस किलोमीटर ही तो है पड़ौसी पाकिस्तान। इसलिए अ'छा है आधे पाकिस्तान में जाकर वहां के लोगों पर अपनी गुंडागर्दी का रौब दिखाओ। डेंगू वाले गुंडों की अ'छी-खासी बैठक में सराहनीय निर्णय यह लिया गया कि आधे डेंगू वाले गुुंडे पाकिस्तान जाएंगे।... लेकिन इस निर्णय की जानकारी गंगानगर नगर परिषद को मिल गई। तभी तो एक और बैठक आज भी बुला ली गई। अब बोलो कल सोमवार को बैठक के रूप में भड़ास निकालने, सफाई देने और आश्वासनों की प्रतियोगिता हुई थी और आज की बैठक में खून इकट्ठा करने के लिए फौज बनाने पर विचार। किसी जरूरतमंद डेंगू पीडि़त को खून की जरूरत हो, तो उसे तुरंत खून उपलब्ध हो जाए। यही उद्देश्य रहा आज ही की बैठक में। काफी दिनों से डेंगू की गुंडागर्दी की वजह से प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन बैठकों में सिवाय चर्चाओं के अलावा कुछ नहीं हुआ। छुटपुट प्रयास ही हुए। प्रयास भी ऐसे, जैसे दशहरे वाले दिन रामलीला मैदान में सत्तर फिट के विशालकाय रावण के पुतले में छुटपुट पटाखे फूटे हों। बाकी सारे के सारे फिस्से हुए हों। चलो डेंगू वाले गुंडों को भी मेरी तरफ से बधाई। उन्हें अब खून चूसने के लिए पाकिस्तान जाने की जरूरत नहीं, बल्कि उन्हें गंगानगर में ही खून मिल जाएगा। एक फौज तैयार हो रही है, जो जरूरतमंदों को खून तुरंत उपलब्ध करवाएगी। यही खून डेंगू वाले गुंडों का पेट भरेगी। मेरी बधाई सुनने के बाद डेंगू वाले गुंडे ऐसे नारे डेंगू नहीं हम गुंडे हैं, डेंगू नहीं हम गुंडे हैं.... लगाने लगे, जैसे कारगिल युद्ध में वीर जवानों ने नहीं बल्कि उन्हीं ने झण्डा फहराया हो। ... और मैं चला फट्टे महाराज की जय हो... जय हो... के जायकारे के साथ नए फट्टे की तलाश में।

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