Thursday, September 23, 2010

ग्रेट सट्टा यूनियन!


यूनियन, संगठन, समिति, संघ न हो तो सभी बिखरे हुए बेरों की तरह नजर आएंगे। बिखरे नहीं रहें, तभी तो कपड़ा यूनियन, मजदूर यूनियन, किसान संघ, संघर्ष समिति जैसे अनेक समूह बने हैं। आजकल चार आदमी इकट्ठा हुए, यूनियन बनाई, प्रेस नोट जारी किर दिया। फिर उस यूनियन का तभी नाम सामने आता है जब या तो किसी की मौत होती है और या फिर कोई पर्व। ऐसी यूनियनों के पास शोक जताने, निंदा करने और बंधाई से ही फुर्सत नहीं मिलती। जब सभी यूनियन बना सकते हैं, तो सटोरियों ने किसकी भैंस खोल ली, जो वे यूनियन नहीं बना सकते। माना कि उनका काम गैर कानूनी है, लेकिन वे खाकी वाले भाइयों से परेशान भी तो हैं। खाकी वाले भाई जब चाहा, मुंह उठाया और चल दिए सटोरियों को पकडऩे के लिए वो भी दो-तीन सौ रुपए की नकदी के साथ (वो अलग बात, नकदी हजारों में हो)। पुलिस का पकडऩ-पकड़ाई का खेल महीने के अंतिम सप्ताह तक धीमा होता है, तो जरूर सटोरियों को थोड़ी-बहुत राहत मिल जाती है। सोचो यदि इनकी यूनियन बन जाए? सोचने मेें भला कौन से पैसे लगेंगे। यूनियन का नाम होगा ग्रेट सट्टा यूनियन। ग्रेट इसलिए, क्योंकि वह महान है। महान है, तभी तो आज तक पुलिस इस पर रोक नहीं लगा पाई है। यूनियन बनने का सबसे अधिक फायदा किसको होगा? सिर खुजलाने या दिमाग का मीटर घुमाने की जरूरत नहीं। फायदा खाकीवालों को होगा। उन्हें हर हफ्ते हजार, दो हजार, पांच हजार, दस हजार या लाख रुपए के लिए धक्के नहीं खाने होंगे। सौ-दो सौ रुपए के लिए भी छोटे-मोटे सटोरियों की फट्टे तक जाने की जरूरत नहीं होगी। सटोरियों की यूनियन बने, तो यह भेंट गिफ्ट हासिल करने का टंटा ही खत्म हो जाएगा। यूनियन बनने के बाद प्रधान के दरबार में खाकीवाला हाजरी बजाएगा। प्रधान दूसरे पदाधिकारी को भुगतान करने का कहेगा। वो बात अलग है कि दूसरा पदाधिकारी भुगतान के बदले में खाकी वालों से ही थोड़ी-बहुत घूस ले ले। ऐसी स्थिति में उन लोगों को जरूर खुशी होगी, जो हमेशा पुलिस पर ही घूस लेने का रोना रोते रहते थे। उन्हें खुशी होगी कि आखिर खाकीवालों को भी घूस देनी ही पड़ी। यूनियन से भुगतान हुआ, आगे खाकीवालों को भुगतान ग्रेड के अनुसार किया जाएगा। कुछ यूनियनों में सदस्यों की ओर से निर्धारित सौ-दो सौ की मंथली दी जाती है, उसी तरह ग्रेट सट्टा यूनियन के सदस्यों की मंथली फिक्स होगी और यही फिक्स मंथली खाकीवाले भाइयों को जाएगी। महीने के अंतिम दिन सट्टा लगता नहीं है, तो उसी दिन यूनियन की बैठक भी होगी। अनेक यूनियनों की बैठकों में हिसाब-किताब को लेकर हंगामा होता है, तो भला ग्रेट सट्टा यूनियन में भी हंगामा होगा। आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे। प्रधान भांति-भांति के खर्चे दिखाएंगे। जैसे फलां खाकी वाले को इतनी भेंट चढ़ाई, फलां जागरण में इतने का चढ़ावा चढ़ाया या फलां की शादी में इतने का सामान दिलाया। प्रधान बैठक में ही बोलता- लोगों जेबें खाली करने के बाद बद्दुओं से छुटकारा पाने के लिए दान करना भी तो जरूरी था। नाराज लोग कहेंगे- शहर के अधिकांश कार्यक्रमों में जाते हो, गले में मालाएं डलवाते हो। यह सब ऐसे थोड़े ही हुआ है। हमने तुम्हें प्रधान चुना है। प्रधान का जवाब होता-आने वाले दिनों में जनता मुझे नेता भी तो चुनेगी। यूनियन बनने के बाद सटोरिए सेफ होंगे, पुलिस की जेब भी सेफ होगी और अनसेफ होगी तो सट्टा लगाने वालों की जेबें। शाम सट्टा लगाएंगे और सुबह माथा पीट लेंगे। पीटो... पीटो ... माथा पीटो। ... और कामना करो कि यूनियन ना बन जाए।

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